मंगलवार, 9 अक्टूबर 2018

KAVIRAJ KARNIDAN KAVIYA


कविराज करनी दान कविया 

   कवि करणी दान कविया का जन्म जयपुर आमेर रियासत के डोगरी गांव में हुआ था। यह डोगरी गांव करणी दान के पूर्वज डूंगरसी को मिर्जा राजा जयसिंह द्वारा प्रदान किया गया था। करणी दान के पिता का नाम विजय राम और दादा का नाम प्रयाग दान था। इनके पिता विजयराम भी अच्छे कवि और समाज में माने हुए आदमी थे। इनकी माता का नाम इतिया बाई था। इनकी एक बहन थी जिनका नाम बृज बाई था और वह विदुषी और अच्छी कवयित्री थी। करणी दान की दो शादियां हुई उनकी एक पत्नी तहलेवाली गांव की थी और दूसरी झुडिया गांव की थी। उनके अनुप राम ,राम दास और लच्छीराम 3 पुत्र थे जिनमें से अनुप राम उनके पाटवी पुत्र थे। जवानी में करणीदन शाहपुरा, डूंगरपुर और उदयपुर में निवास करते रहे और अंत में जोधपुर पहुंचकर स्थाई रूप से रहने लगे। बाद में जोधपुर में महाराजा बख़त सिंह के शासनकाल में करणी दान किशनगढ़ चले गए थे और वही जीवन की अंतिम सांस ली। उदयपुर के महाराजा संग्राम सिंह द्वितीय इनके गीतों और छंदों को मंत्रों की भांति पूजा  करते थे। महाराजा अभयसिंह और रामसिंह के बाद जोधपुर का शासन काल बख्तसिंह के हाथों में  आया और उनके शासनकाल में यह किशन गढ़ जा बसे। उनकी मृत्यु भी किशनगढ़ में ही हुई थी।कवि करनी दान की प्रामाणिक जन्म तथा मृत्यु तिथि  प्राप्त नहीं हुई है।           
    करणी दान का प्रारंभिक जीवन शाहपुरा में बीता और वहीं उन्होंने अपनी काव्य प्रतिभा का परिचय दिया। विक्रम संवत 1824  अर्थात् ई. सन 1767 के करीब  शाहपुरा नरेश उम्मेद सिंह ने मराठों के खिलाफ मेवाड़ी सेना का नेतृत्व करते हुए अद्भुत रण कौशल  प्रदर्शित किया और अपनी जान की बाजी लगा दी। तब करणी दान ने उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए मर सियों के रूप में कई गीतों और दोहों की रचना की। शाहपुरा के बाद करणी दान डूंगरपुर पहुंचे और उन्होंने वहां तत्कालीन नरेश रावल शिव सिंह को अपनी काव्य प्रतिभा से प्रसन्न कर दिया। रावल  शिव सिंह की प्रशंसा में इनके द्वारा कई गीतों और दोहों की रचना की गई। शिव सिंह ने कविराज करणी दान को प्रसन्न होकर लाख मुद्राओं से सम्मानित किया। वहां से करणी दान उदयपुर पहुंचे। इस समय उदयपुर में महाराजा संग्राम सिंह द्वितीय का शासन था ।जब उन्होंने वहां पहुंचकर सिसोदिया वंश की गौरव गाथा और मेवाड़ के महाराणाओं के पराक्रम की अभिव्यक्ति करने वाले चार-पांच गीत सुनाए तो उन्होंने महाराणा को मंत्रमुग्ध हो उठे और वही उन्हें कविराज की उपाधि प्राप्त हुई। यहां तक कि महाराजा संग्राम सिंह ने कविराज करणी दान के गीतों और दोहों को मडवा कर उन्हें पूजा गृह में रखवा दिया तथा रोज उनकी पूजा करना प्रारंभ कर दिया। साथ ही महाराणा ने इन्हें लाख मुद्राए देकर सम्मानित भी किया। कविराज ने उदयपुर में काफी समय तक निवास किया। उनके द्वारा उदयपुर के महाराणा संग्राम सिंह द्वितीय और महाराणा जगतसिंह दोनों की प्रशंसा में लिखे हुए कई गीत उपलब्ध है।
    कहा जाता है कि एक बार शाहपुरा नरेश के साथ कविराज किसी विवाह समारोह के अवसर पर उदयपुर गए हुए थे। वहां जोधपुर ,उदयपुर आदि अनेक रियासतों के राजकवि इकट्ठा हुए थे। समस्त कवि अपनी अपनी साहित्यिक रचनाएं प्रस्तुत कर रहे थे। इसी अवसर पर कवि करनी दान द्वारा उदयपुर महाराणा की प्रशंसा में कई गीत एवं दोहे प्रस्तुत किए गए। उनमें एक दोहा निम्नानुसार थाः-                                                                                                      
डोले नहदी डीकरी, नव रोजे निर्माण।
हुआ न कोई होवसी, सिसोदिया समान।।

    कहा जाता है कि इस दोहे को सुनकर जोधपुर नरेश महाराजा अभय सिंह कविराज करणी दान की प्रतिभा से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने विदाई के समय शाहपुरा नरेश से इनको मांग लिया। शाहपुरा नरेश ने जोधपुर महाराजा का सम्मान करते हुए करणी दान को जोधपुर दरबार में भिजवाया। जोधपुर में अपनी काव्य प्रतिभा, राजनीतिक सूझबूझ और शौर्य प्रदर्शन से करणी दान ने अत्यंत प्रसिद्धि अर्जित की। जोधपुर में ही उन्होंने अपने प्रसिद्ध प्रबंध काव्य सूरज प्रकाश की रचना की। इन्होंने महाराजा अभय सिंह के साथ कई युद्धों में भी सक्रिय भाग लिया और अपने शौर्य का प्रदर्शन किया। एक अवसर पर पुष्कर में कवि करणी दान की जोधपुर महाराजा अभयसिंह के साथ आमेर नरेश जयसिंह से मुलाकात हुई। उस वक्त आमेर नरेश ने जोधपुर और आमेर दोनों रियासतों को मिलाकर कुछ दोहे सुनाने की मांग रखी। करणी दान द्वारा तत्काल एक ऐसा दोहा रचा गया, जिसमें जयपुर नरेश द्वारा राज्य के लोभ में अपने पुत्र शिवसिंह और जोधपुर नरेश के छोटे भाई बखत सिंह द्वारा अपने पिता अजीत सिंह की हत्या करने पर व्यंग्य किया गया था

पत जैपुर जोधान पत, दोनूं थाप उथाप।
कूरम मार्यो डीकरो, कम धज मारियो बाप।।

    अहमदाबाद के युद्ध में करणी दान ने सक्रिय भाग लिया था और युद्ध की समाप्ति के उपरांत उन्होंने वृहत काव्य ग्रंथ सूरज प्रकाश की रचना की थी। संयोग से इसी समय वीरभान रतनू द्वारा अहमदाबाद युद्ध से संबंधित राज रूपक और बख़़ता खिड़िया ने 166 कवित्त लिखे थे। तीनों अपने अपने ग्रंथ महाराजा अभय सिंह को सुनाने गए। तीनों ग्रंथों को इतना बड़ा विस्तार से सुन पाना महाराजा के लिए व्यस्त जिंदगी में संभव नहीं था। अतः उन्होंने इन ग्रंथों को संक्षिप्त करने के लिए कहा। वीरभान रतनू और बखता जी अपने ग्रंथों का संक्षिप्त रूप प्रस्तुत नहीं कर सके लेकिन करणी दान ने अहमदाबाद युद्ध को लेकर एक छोटा काव्य ग्रंथ तैयार कर दिया, जिसका नाम था विरद सिणगार। महाराजा ने इसे पूरा सुना और  बहुत प्रभावित हुए। महाराजा ने इसे सुनकर अपने हाथों से कवि करणी दान को पगड़ी और तुर्रे से सम्मानित किया और कवि राजा की उपाधि दी। कविराज की साथ ही लाख मुद्राएं प्रदान की गई और  आलावास नाम का गांव भी जागीर में दिया। यही नहीं महाराजा स्वयं उन्हें हाथी पर बिठा कर और स्वयं साथ-साथ घोड़े पर सवार होकर करणी दान को उनके घर तक पहुंचाने के लिए गए।
    महाराजा अभय सिंह की मृत्यु के बाद उनके पुत्र राम सिंह जोधपुर नरेश बने। करणी दान ने राम सिंह की भी उसी स्वामी भक्ति से सेवा चाकरी की। बाद में  बखत सिंह के जोधपुर पर आक्रमण की सूचना मिलने पर करणी दान और जगन्नाथ पुरोहित दोनों ने ग्वालियर पहुंचकर रामसिंह की मदद के लिए मल्हार राव होल्कर से अनुरोध किया। मल्हार राव होल्कर ने सेना भेजकर राम सिंह की मदद की, लेकिन इस मदद के बावजूद भी राम सिंह परास्त हुए और जोधपुर के पर बखत सिंह का कब्जा हो गया। बखत सिंह की करनी दान से पहले से ही दुश्मनी थी। उनका अधिकार होते ही अन्य चारणों और पुरोहितों के साथ करणी दान की जागीर का गांव अलावास छीन लिया गया । इस अपमान जनक व्यवहार के बाद करणी दान जोधपुर छोड़कर एकांतवास हेतु किशनगढ़ की तरफ चले गए। रास्ते में किशनगढ़ नरेश बहादुर सिंह जी ने करणी दान को किशनगढ़ में रहने के लिए मना लिया। करणी दान का शेष समय किशनगढ़ में ही बीता तथा किशनगढ़ में उनका स्वर्गवास हुआ। इस प्रकार राजस्थान के एक महान कवि  की आत्मा परमात्मा में विलीन हो गई। अब तक कविराज करणी दान की जो कृतियां उपलब्ध है, उनमें सूरज प्रकाश, विरद सिणगार, जत्ती रासो, अभय भूषण तथा स्फुट गीत मुख्य है। उनका प्रमुख सूरज प्रकाश 7500 छंदों का एक विशाल ग्रंथ है, जिसमें मुख्य रूप से जोधपुर महाराजा अभयसिंह द्वारा गुजरात के सूबेदार सर बुलंद खान के विरुद्ध जो युद्ध किया गया था ,उसका काव्यात्मक रूप में सुंदर वर्णन है।
-: महेंद्र कुमार जोशी 

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