गुरुवार, 4 अक्टूबर 2018

VEER AMAR SINGH RATHORE

   

मारवाड़ के वीर : अमर सिंह राठौड़ 

 अमर सिंह राठौड़ मारवाड़ नरेश गजसिंह प्रथम के ज्येष्ठ पुत्र थे और ज्येष्ठ पुत्र होने के नाते गद्दी के दावेदार थे परंतु क्रोधी और उद्दंड होने की वजह से गज सिंह ने अपनी पासवान अनारा बेगम के कहने से अपने जीवनकाल में ही अपने द्वितीय पुत्र जसवंत सिंह प्रथम को अपना उत्तराधिकारी घोषित कर दिया था। साथ ही उन्होंने  अमर सिंह को मारवाड़ से चले जाने का आदेश दिया स्वाभिमानी अमर सिंह पिता द्वारा दिए गए काले वस्त्रों को धारण कर काले घोड़े पर सवार होकर मारवाड़  त्याग कर रवाना हुए। इतिहासकारों के अनुसार कई राजपूत सरदारों को भी वह अपने साथ लेकर गए थे और बाद में वे मुगल बादशाह शाहजहां के दरबार में आगरा पहुंचे। अमर सिंह पराक्रमी और युद्ध कौशल के जानकार थे, अतः उन्हें उनकी योग्यता के अनुरूप बादशाह शाहजहां ने राव की उपाधि से नवाजा और काबुल की लड़ाई में वर्ष 1641-42 में अपनी सेना का सेनापति बना कर काबुुुल भेजा। काबुल में अमर सिंह ने विजय प्राप्त की। उनकी इस जीत से प्रसन्न बादशाह शाहजहां ने अमर सिंह को नागौर की जागीर और 4000 मनसब प्रदान किया। अमर सिंह को शिकार खेलने का बहुत शौक था और अपने इसी शौक के चलते वह मुगल दरबार में नियमित रूप से उपस्थित नहीं हो पाते थे। बादशाह इस अनुपस्थिति पर उन पर जुर्माना लगाने की धमकी देता परंतु अमर सिंह पर कोई असर नहीं होता। एक बार बादशाह ने अपने बक्शी सलावत खां को जुर्माना वसूल करने के लिए नागौर भेजा, लेकिन अमरसिंह ने जुर्माने से साफ इंकार कर दिया। सलावत खा ने आगरा में बादशाह को इस की जानकारी दी और कुपित बादशाह ने अमर सिंह को आगरा तलब किया। आखिर अमर सिंह को आगरा दरबार में आना पड़ा। उस समय की दरबारी परंपरा के अनुसार यह रिवाज  था कि कोई मनसबदार बादशाह को सलाम करें तो पहले उसे बक्शी यानी सलावत खां से अनुमति लेनी पड़ती थी। क्योंकि राव अमरसिंह गुस्सैल थे और जवान भी थे और बादशाह के बार-बार बुलाने पर आगरा पहुंचे थे ,उन्होंने बक्शी सलामत खां को पूछे बिना ही बादशाह को मुजरा किया। इस पर सलामत खा ने अमर सिंह को अपशब्द कहते हुए गवार कहने की कोशिश की। इस संबंध में  एक कवि की उक्ति है कि
इत मुख ते गाग्गो  कहियो उत कर लई कटार।।
वार कहन पायो नहीं जमघर हो गई पार।।
    सालावत खां अभी अमरसिंह को गंवार कह भी नहीं पाया था कि अमर सिंह ने अपनी कटार इतनी जोर से फेंकी कि सलावत खां मारा गया और वह कटार सलावत खां के मर्म को भेद कर खंभे से जा टकराई। यदि खंबा बीच में ना होता तो उस कटार से बादशाह को भी चोट पहुंच सकती थी। अमर सिंह के इस आकस्मिक हमले से शाहजहां के राज दरबार में भगदड़ मच गई और तुरंत ही सारा दरबार खाली हो गया। भयभीत बादशाह शाहजहां सिहासन छोड़कर रनवास की ओर भागा। बादशाह को भयभीत देख बेगम ने कारण पूछा जिसका उल्लेख कवि ने इन शब्दों में किया है                                             
बीबी करो नबी को याद खुदा ने जान बचाई है आज।।
   अमर सिंह के इस आक्रमण से राज दरबार में तहलका मच गया ।अमर सिंह शेर की तरह टूट पड़ा और जो भी सामने आया उसकी तलवार से मारा गया ।मामूली अंतराल में मुगल सेना के 5 सेनापति मारे गए और सारा दरबार खून से भर गया ।अमर सिंह की वीरता और साहस पर एक कवि ने निम्नानुसार वर्णन अपनी कविता में किया है                                            
शाहजहां कहै यार सभा माही बार-बार।
अमर की कमर में कहां की कटारी थी।।
शाही को सलाम करें मारियो तो सलावत खां।
दिखा गयो मरोर सूरवीर धीर आगरो।।
मीर उमरावन की कचेडी धुजाय डारी ।
खेलत शिकार जैसे मृगन में बागरो।
कहे पनराज गजसिंह के अमरसिंह ।
राखी रजपूती मजबूती नव नागरो।
पाव सेर लौह से हिलाई सारी पतसाही ।
होती शमसीर तो छिनाय लेतो आगरो।
महेंद्र कुमार जोशी 

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