मावजी महाराजा की पुण्य भूमि: बेणेश्वर धाम
रंग रंगीला राजस्थान विविध जातियों और संप्रदायों के पर्वों तथा मेलों के कारण भी स्वयं में एक अनूठी संस्कृति समाये हुए है। राजस्थान के धुर दक्षिण में स्थित बेणेश्वर धाम भी प्रदेश की इसी अनूठी संस्कृति के बहुरंगी चित्रांकन की बेजोड़ रचना करता है। आदिवासियों का कुंभ कहलाने वाला यह स्थल डूंगरपुर तथा बांसवाड़ा की सरहदों पर स्थित है। त्रिदेवों के मंदिर का संगम स्थल होते हुए भी यहां का मुख्य आकर्षण शिव मंदिर है।
कहा जाता है कि प्राचीन काल में इस स्थान पर बेण अर्थात् बांस के पेड़ों की प्रचुरता थी, अतः स्थल का नाम बेणेश्वर धाम पड़ा। कुछ आख्यानों के अनुसार यहां के बणैला शिव मंदिर को बेणका ईश्वर कहा जाता था, अतः इस स्थल का नाम शिव मंदिर के कारण बेणेश्वर धाम पड़ा। धर्म शास्त्रों के अनुसार प्रहलाद के पौत्र और विरोचक के पुत्र दैत्याराजबलि ने यहां यज्ञ किया था। डूंगरपुर जिले के साबला ग्राम के पास करीब 240 बीघा क्षेत्र में बना गृह स्थल एक टापू है जो सोम-माही-जाखम नदियों के संगम स्थल पर स्थित है। वर्तमान में साबला पंचायत समिति है, तथा यहां के मेले की समस्त व्यवस्थाएं जिला प्रशासन तथा पंचायत समिति द्वारा संपादित की जाती है। यह मेला माघ शुक्ल एकादशी से कृष्ण पंचमी तक अर्थात् कुल दस दिन तक भरता है। मेले में तीन राज्यों राजस्थान, गुजरात तथा मध्यप्रदेश के लोग भाग लेते है। मुख्य मेला पूर्णिमा को होता है।
मेले में भक्तगण मावजी महाराज की जय-जयकार करते हैं। मावजी महाराज इस क्षेत्र के प्रसिद्ध संत हुए हैं जिनका जन्म 18वीं सदी में सांवला में हुआ था। इन्हें श्रीकृष्ण का अवतार माना जाता है।मावजी महाराज ब्राह्मण कुल के दालम ऋषि के पुत्र थे तथा उनकी माता का नाम केसर बाई था। इनका जन्म 28 जनवरी 1715ई. का माना जाता है। मावजी ने छोटे-मोटे करीब 750ग्रंथ लिखे थे। ज्योतिष को सरल करने के लिए विद्वान मावजी ने 64 कोठों की निष्कलंक सुकनावली बनाई जो वागड़ से संपादित श्रीशुभवेला पंचांग में प्रकाशित की जाती है। मावजी महाराज ने सोमसागर,, प्रेमसागर, मेघसागर, रतनसागर एवं अनंतसागर नामक पांच ग्रंथों की रचना की थी। इन्हीं ग्रंथों को वागड़ी भाषा (डुंगरपुर तथा बांसवाड़ा का क्षेत्र वागड़ कहलाता है। इस प्रदेश की भाषा वागड़ी है।) में चोपड़ा कहा जाता है। यह भी माना जाता कि यहां के शिव मंदिर में ही जिसका निर्माण करीब 500 वर्ष पूर्व डूंगरपुर के महारावल आसकरण ने करवाया था, मावजी ने चोपडे की रचना की थी। चोपडे में अनेक भविष्य वाणियों का संकलन है। ऐसा विश्वास है कि ये भविष्यवाणियां अब तक सही साबित हुई हैं। मावजी महाराज की प्रमुख गादी साबला में हैं।
मावजी महाराज के देवलोक प्रयाग के बाद उनकी पुत्रवधु जनकुंवरी लगभग 80 वर्षों तक गादीपति रहीं। उन्होंने बेणेश्वर में हरि मंदिर (श्रीकृष्ण मंदिर) का निर्माण उस स्थान पर करवाया जहां मावजी महाराज अपनी साधना किया करते थे। यह स्थान आबूदरा कहा जाता है। मेले की शुरूआत इसी मंदिर पर साबला गादी के महंत द्वारा ध्वजारोहण के साथ होती है। यहां त्रिदेवों के मंदिर के अलावा भी कई मंदिर हैं। आदिवासियों के साथ ही विविध संप्रदायों के अमीर तथा गरीब लोगों के अलावा विदेशी पर्यटक भी मेले का पूरा आनंद लेते हुए दिखाई पड़ते है। आजकल मेले में सांस्कृतिक कार्यक्रमों के अलावा कई खेल प्रतियोगिताऐं भी आयोजित की जाती हैं, जिनसे मेले का आकर्षण बढ़ता ही जा रहा है। इस क्षेत्र की प्रमुख उक्ति हैः-
महीसागर नु पाणी नें मावजी नी वाणी।।
-महेंद्र कुमार जोशी
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