जब पोकरण का वीर गूंजा मारवाड़ के दरबार में
बात उन दिनों की है जब जोधपुर पर राठौड़ वंश के महाराजा विजयसिंह का शासन था। महाराजा विजयसिंह बखतसिंह के पुत्र थे। उनका जन्म 1729ई. में हुआ।सिघोंली में बखतसिंह की मृत्यु के समय विजयसिंह मारोठ में थे तथा वहीं उनका राज्याभिषेक हुआ। बाद में 31 जनवरी1753ई.को उनके राजतिलक का उत्सव मनाया गया।करीब 40वर्ष तक शासन करने वाले विजयसिंह ने मारवाड़ में सर्वप्रथम अपने नाम से चाँदी के सिक्के चलाये थे,जो विजयशाही सिक्कों के नाम से प्रसिद्ध हुए।विजयसिंह की परम प्रिय प्रेयसी पासवान गुलाबराय थी,जो भरतपुर की जाट थी।मारवाड़ में उस समय गुलाबराय की ही हुकुमत चलती थी।जोधपुर का गुलाबसागर तालाब गुलाबराय ने ही बनावाया था।उस समय पोकरण ठिकाने के ठाकुर देवीसिंह चंपावत थे।पोकरण के ठाकुर महत्वाकांक्षी होने से मारवाड के राजदरबार तक अपना प्रभाव रखते थे तथा राठौड़ सरदारो में उनकी अच्छी पकड़ थी। महाराजा विजयसिंह तथा ठा.देवीसिंह में राजनीतिक प्रभुत्व को लेकर खींचतान चलती रहती थी,जिससे महाराजा बहुत परेशान थे।इसी बीच एक दिन मौका पाकर महाराजा ने देवीसिंह को किले में आमंत्रित किया तथा अवसर पाकर धोखे से उनकी हत्या करवा दी। चूंकि देवीसिंह के दो पुत्र थे-श्यामसिंह व सबलसिंह,अतः महाराजा ने सेना की एक टुकड़ी उन दोनों की हत्या के लिए भी भेजी।बिलाड़ा के निकट दोनों गुटों में संघर्ष हुआ, इसमें सबलसिंह वीरगति को प्राप्त हुए। सबलसिंह अपने पुत्र को पोकरण ठिकाने का ठाकुर बनाने चाहते थे,अतः उन्होंने अपने भाई से मरणासन्न अवस्था में ही यह प्रण करवा दिया था कि वह(श्यामसिंह) जोधपुर राज्य में कभी पानी तक नहीं पीयेगा। बात के पक्के श्यामसिंह ने अपने भाई को मुखाग्नि देकर जोधपुर रियासत त्याग दी तथा भरतपुर के जाट राजा जवाहरमल की सेवा में चले गये। जवाहरमल ने उनको अच्छा मान-सम्मान दिया तथा कुछ ही समय में भरतपुर राजदरबार में श्यामसिंह की धाक जम गयी।
दूसरी ओर पासवान गुलाबराय अपना रूतबा भरतपुर के जाटों को दिखाना चाहती थी,अतः वह महाराजा विजयसिंह की अनुमति से अपने लाव-लश्कर सहित भरतपुर आ गयी। वहां उसने अपने घमंड़ में जाटों को आशीर्वाद भेजे तथा राजा जवाहरमल को स्वयं के समान ओहदेदार के हिसाब से मुलाकात हेतु बुलावा भेजा। गुलाबराय ने भरतपुर में इतने नखरे दिखाये कि जाट सरदारों को ये नखरे अपना अपमान लगने लगे। अब जवाहरमल ने जाट सरदारों के साथ मिलकर गुलाबराय के डेरे पर रात्रिकाल में हमले की योजना बनाई। इस गुप्त मंत्रणा में श्यामसिंह भी शामिल थे। जवाहरमल ने श्यामसिंह को अपने पिता व भाई की हत्या का बदला लेने के लिए उकसाया तथा गुलाबराय को जिंदा या मृत पकड़ने को कहा।श्यामसिंह ने योजना को अपनी मौन स्वीकृति दी लेकिन मन ही मन वह सोच रहे थे कि यदि गुलाबराय का अपमान होता है तो यह मारवाड़ तथा राठौड़ों का ही अपमान है तथा मारवाड़ महाराजा की पासवान से उनकी उनकी कोई शत्रुता भी नहीं है। यह सोचकर उन्होंने रात्रि को पासवान गुलाबराय को पूरी गुप्त खबर कर दी। समाचार सुनकर गुलाबराय अपने लश्कर सहित जयपुर रियासत की सीमा की ओर भागी। रात्रि को जब जवाहरमल की सेना आयी तो गुलाबराय का डेरा खाली था।जवाहरमल ने आदेश दिया कि उस जाटणी का पीछा कर मार दिया जावे। फौज पीछे भागी लेकिन रास्ते में खड़ी थी श्यामसिंह की छोटी सेना तथा स्वयं श्यामसिंह। लड़ाई में श्यामसिंह घायल हुए लेकिन सेना को आगे नहीं जाने दिया। कुछ सरदार घायल श्यामसिंह को पासवान गुलाबराय के जयपुर स्थित डेरे में ले गये।जहां उनका ईलाज करवाया गया।गुलाबराय श्यामसिंह के अहसान के बोझ तले दबी जा रही थी। उसने श्यामसिंह के पैर पकड़कर उनसे जोधपुर चलने का अनुरोध किया तथा कहा कि जो भी ठिकाना चाहिए वह आपकी नजर होगा लेकिन श्यामसिंह ने कहा कि मैंने जागीर के लिए यह कार्य नहीं किया है वरन राठौड़ों की लाज बचाने के लिए किया है। उन्होंने कहा कि वह वचनबद्ध है कि जोधपुर राज्य का पानी तक नहीं पीयेंगे। उनकी बात सुनकर गुलाबराय उनकी वचनप्रियता की कायल हो गयी तथा उसकी आंखों से आंसू बहने लगे। श्यामसिंह अंततः जयपुर ही रहे तथा महाराजा विजयसिंह के अनुरोध पर जयपुर महाराजा ने श्यामसिंह को हवेली तथा गीजगढ़ की जागीर दी। गुलाबराय ने श्यामसिंह के छोटे पुत्र इन्द्रसिंह को राजदरबार में बुलवाकर खूब आदर सत्कार किया तथा पुष्कर के पास थावला की जागीर दी जो बाद में इन्द्रगढ़ थावला कहलाया है।
श्यामसिंह चंपावत की इस गौरवगाथा पर राजस्थानी साहित्यकार रानी लक्ष्मीकुमारी चूंड़ावत ने राजस्थानी भाषा में 'जबान रो धणी' नामक कहानी भी लिखी है।
धन्य है श्यामसिंह की वचन परस्ती।
प्रस्तुतिः- महेन्द्र कुमार जोशी
Shandar
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया
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