क्या है एन.आर.सी. का विवाद ?
हाल ही में देश में एन.आर.सी. अर्थात नेशनल रजिस्टर आॅफ सिटीजन का मुद्दा देश के पूर्वोत्तर राज्य असम में गर्माया हुआ है | इस मुद्दे को लेकर केन्द्र सरकार चौतरफा घिरी हुई दिखाई पड़ रही है ।सरकार पर आरोप है कि असम में लाखों लोगों को एन.आर.सी. में जानबूझकर पंजीकृत नही किया गया है तथा मात्र उपनाम देख कर ही उनके नाम पृथक कर दिये गये हैं। इन आरोपों का सार यही है कि देश की केन्द्र सरकार में स्थापित भारतीय जनता पार्टी एक हिन्दुवादी पार्टी है तथा वह मुसलमानों के साथ अन्याय कर रही है।
दरअसल बांग्लादेश जब अलग स्वतन्त्र राष्ट्र बना तो बांग्लादेश के मुखिया शेख मुजीबुर्रहमान तथा भारत की तत्कालीन प्रधानमन्त्री स्वर्गीय श्रीमती इन्दिरा गांधी के मध्य यह समझौता हुआ था कि 25 मार्च 1971 ई. तक असम में रहने वाले नागरिकों की नागरिकता तय की जावेगी। बांग्लादेश से हुए युद्ध के दौरान हजारों-लाखों शरणार्थी भारत में आये थे। नया स्वतन्त्र राष्ट्र बनने के दौरान इन शरणार्थियों को भारत में रहने या वापस बांग्लादेश लौटने की छूट दी गई थी लेकिन बावजूद इसके भी बांग्लादेश से भारत में घुसपैठ जारी हैं। नागरिकता के इसी मसले को लेकर असम में जन आन्दोलन भी हुए थे अतः केन्द्र सरकार के लिए नागरिकता के इस मुद्दे का समाधान करना अनिवार्य था।
एन.आर.सी. की आवश्यकता के संदर्भ में असम के जनसांख्यिकीय आंकडो में हो रहे बदलाव की चर्चा प्रासंगिक है। उल्लेखनीय है कि देश की स्वतन्त्रता से पूर्व वर्ष 1901 ई. में असम में मुस्लिम जनसंख्या 12.40 प्रतिशत थी, जो आगामी 40 वर्षो में वर्ष 1941 ई. में बढ कर 25.72 प्रतिशत हो गई। यह सिलसिला देश की स्वतन्त्रा के बाद भी कायम रहा तथा बांग्लादेश निर्माण के बाद इस क्रम में और भी तेजी आई। बांग्लादेश के घुसपैठियों द्वारा असम की नागरिकता प्राप्त करनें के कारण ही वर्ष 1980 ई में असम छात्र संगठन ने इन घुसपैठियों को बाहर निकालने का आन्दोलन भी छेडा था। वर्तमान में मुस्लिम जनसंख्या में और भी ज्यादा वृद्धि बढती हुई घुसपैठ को प्रदर्शित करती है।
वर्ष 1985 ई. में देश के तत्कालीन प्रधानमन्त्री स्वर्गीय राजीव गांधी ने एन.आर.सी. तैयार करने के निर्देश दिये थे,लेकिन यह योजना किन्हीं कारणों से कार्य रूप में परिणत नही हो पाई। बाद में सर्वोच्च न्यायालय ने मनमोहन सिंह सरकार को एन.आर.सी. तैयार करने के निर्देश दिये थे तथा देश की सर्वोच्च अदालत के निर्देशानुसार यह प्रक्रिया तभी से चल रही है। इस प्रक्रिया में अब तक करीब 1200 करोड रूपये की राशि खर्च हो चुकी है तथा इस कार्य के सम्पादन में लगभग 62 हजार कर्मचारी कार्य कर रहे है। प्रक्रिया के दौरान असम में अपनी नागरिकता पंजीकृत करवाने के लिए करीब 3 करोड 29 लाख लोगों ने आवेदन प्रक्रिया सम्पन्न की थी, जिनमें से अभी तक 2 करोड 89 लाख लोगों का पंजीयन हुआ है तथा शेष 40 लाख लोगों की नागरिकता अभी तक तय होनी बाकी है। यही विवाद की मुख्य जड है। तथ्य यह भी है कि नागरिकता तय नही होने वाले लोगों में बांग्लादेशी मुसलमानों के अलावा भारत के कई हिन्दू भी शामिल हैं।
चूंकि यह देश की सुरक्षा तथा शासन व्यवस्था से सम्बन्धित मसला है, अतः केन्द्रीय गृहमन्त्री श्री राजनाथ सिंह ने पंजीकरण से वंचित रहे व्यक्तियों को आगामी दिनों में सुनवाई का अवसर देने का पूर्ण आश्वासन दिया है। माननीय उच्चतम न्यायालय ने भी देश की केन्द्र सरकार कों बिना किसी भेदभाव के वंचित लोगों की आपत्तियाँ दर्ज करने के निर्देश दिये हैं। यह एक बहुत बडा अभियान है जिसमें कमियाँ रहनी स्वाभाविक है, तथा जिन्हें सुधारने को केन्द्र सरकार एवं सर्वोच्च अदालत तैयार है। यह मुद्दा वास्तव में हिन्दू-मुस्लिम अथवा राजनीति का नही वरन् नागरिकता का है, जो देश के संविधान के प्रावधानों के अनुरूप निर्धारित की जानी है। अन्तिम निर्णय का देश को इन्तजार है।
प्रस्तुति- महेन्द्र कुमार बोहरा
केशव नगर वार्ड नं0 29 फलोदी
मों0 9928866498
- आंकडे व तथ्य विभिन्न समाचार पत्रों में प्रकाशित आलेखो पर आधारित है।
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