शनिवार, 18 अगस्त 2018

PICHHDA VARG AAYOG

पिछड़ा वर्ग आयोगःनवीन प्रावधान

    देश में कईं जातियां पिछड़ेपन का दंश कईं वर्षों से झेल रही थी। इन जातियों के उत्थान व हक के लिए किसी प्रतिनिधि की जरूरत महसूस हुई क्योंकि कोई भी लड़ाई बिना सेनापति, बिना प्रतिनिधित्व के नहीं लड़ी जा सकती। इसी को मद्देनजर रखते हुए सरकार ने पिछड़ी(सामाजिक व शैक्षणिक हैसियत से) जातियों के हितार्थ राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग का गठन तो किया लेकिन शक्तियां प्रदान करने के वक्त दिलचस्पी नहीं दिखाई। अतः इस आयोग के बारे में कहा जाता रहा है कि यह एक दंतहीन और नखविहीन यानी कि शक्ति रहित आयोग है। इसे कोई संवैधानिक दर्जा प्राप्त नहीं था। देश में ओबीसी जातियों की संख्या भी कम नहीं है।
    मंड़ल आयोग ने 1931 की जातिवार जनगणना के आधार पर ही 1980 में राष्ट्रपति को रिपोर्ट सौंपी थी। उस समय भारत में ओबीसी जातियां कुल जनसंख्या का 52 प्रतिशत थी।उस समय ओबीसी जातियों की संख्या 3743 थी। उसके बाद से आज तक भारत में पुनः व्यवस्थित व व्यापक जातिवार जनगणना नहीं की गयी। लेकिन राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण ने 1999 के आधार वर्ष पर ओबीसी को कुल जनता का 36% एवं राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण संगठन ने 2000 आधार वर्ष पर इसे 34% माना है। जिसमें मुस्लिम ओबीसी शामिल नहीं है। लेकिन वृहद् स्तर पर जनगणना किये बिना इन सब पर विश्वास करना कठिन होगा फिर भी आज भारत में ओबीसी की करीब 5000 से भी अधिक जातियां हैं। ऐसे में इस आयोग की महत्ता और अधिक हो जाती है।
    इस अयोग की स्थापना 1993 में की गयी। किन्तु अब तक ये आयोग केवल सिफारिश(recommend) ही कर सकता था कोई एक्शन नहीं ले सकता था। यही कारण था कि इसे दंतहीन व नखविहीन आयोग कहा जाता था। कोर्ट के मामलात में भी (नौकरियों व भर्ती प्रकिया के बाबत) अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति आयोग इसका नेतृत्व करता था मतलब कि अदालती मामलों में भी यह आयोग किसी अन्य के ऊपर आश्रित था। 
    123वें संविधान संशोधन के बाद इस आयोग को संवैधानिक दर्जा मिलने का रास्ता साफ हो गया है। अनुसूचित जाति/जनजाति की शिकायतों का निपटारा अनुच्छेद 338 के अनुसार किया जाता है। अब तक पिछड़े वर्ग की शिकायतों का निपटारा भी इसी अनुच्छेेद के अंतर्गत किया जाता था लेकिन 123वें संविधान संशोधन-2017 के संसद के दोनों सदनों में पास हो जाने के बाद संविधान में दो नये अनुच्छेद 338-बी व 342-ए जोड़े जायेंगे। जिसके तहत राष्ट्रीय पिछड़ वर्ग आयोग को एक स्वायत निकाय के रूप में मान्यता मिल जायेगी जो पूर्व में अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति आयोग को हासिल है।
    इस संविधान संशोधन से अब यह केवल सिफारिश करने तक ही न रहकर सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े व्यक्ति की शिकायत पर संज्ञान या एक्शन लेकर देश के किसी भी भाग में न केवल नोटिस और सम्मन जारी कर सकेगा, बल्कि एक सुनवाई न्यायालय के रूप में भी काम कर सकेगा। यह आयोग अब पिछड़ा वर्ग हेतु बनाये गये सुरक्षा उपायों से संबंधित मामलों की जांच व निगरानी करने के बाबत भी अधिकार प्राप्त होगा।
    राज्य अब अपनी ओबीसी सूची के लिए भी स्वतंत्र होंगे यानी अब राज्य बिना राज्यपाल से परामर्श लिए किसी खास जाति को ओबीसी सूची में ड़ालने के लिए सीधे केन्द्र या आयोग को सिफारिश भेज सकेंगे।
    एक ओर पूरे देश में आरक्षण प्राप्त करने की होड़ लगी है तो दूसरी ओर सरकार इन सब पर चौतरफा घिरी नज़र आती है। ऐसे में इस आयोग को संवैधानिक दर्जा मिलना देश में आरक्षण प्रेरित आंदोलनों को रोकने के लिए मील का पत्थर साबित होगा। यही आशा है कि आयोग अब व्यापक स्तर पर सुव्यवस्थित होकर देशहित में काम करेगा।
-दिनेश कुमार जोशी 

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