शनिवार, 25 अगस्त 2018

JODHPUR KI STHAPNA

जोधपुर की स्थापना 

राव जोधा(29.3.1415 से 16.4.1488)

     सन् 1949ई. में विशाल राजस्थान में सम्मिलित होने से पूर्व जोधपुर मारवाड़ रियासत की राजधानी थी।12मई 1459ई.को जोधपुर की स्थापना से पूर्व मारवाड़ की राजधानी मंडोर में थी।मंड़ोर करीब 18वर्षों तक मारवाड़ की राजधानी रहा था।इतिहासकारों के अनुसार राठौड़ों से पूर्व यह प्रदेश मौर्य, कुषाण, हूण, गुप्त, गुर्जर-प्रतिहार, चावड़ा तथा परिहार वंश के आधिपत्य रहा था।15वीं सदी के आसपास से सींमात प्रदेश होने तथा अपनी भौगोलिक स्थिति के कारण यह क्षेत्र बार बार आक्रमणकारियों से आक्रान्त होेने लगा था तथा यहाँ के तत्कालीन परिहार शासक भी इन आक्रमणों का प्रतिरोध करते करते थक चुके थे।अतः राजा धवलइंदा परिहार ने  मंड़ोर को मुस्लिम आक्रान्ताओं से बचाने के लिए राठौड़ वंशी परम शक्तिशाली राव चूंडा से अपनी पु़त्री का विवाह कर मंड़ोर राठौड़ों को दहेज में दे दिया।तब से मारवाड़ राठौड़ों के आधिपत्य में रहा। इस बाबत मारवाड़ में यह सोरठा प्रसिद्ध है-
इंदा तणों उपकार कमधज(राठौड़) कदै न बीसरै।
चूंड़ों चंवरी चाढ़ दियौ मंड़ोवर दायजै।।
     राव चूंड़ा के पुत्र राव रिड़मल अथवा राव रणमल्ल भी पराक्रमी थे लेकिन वे मेवाड़ की राजनीति में अधिक सक्रिय थे क्योंकि राव चूंड़ा के पुत्र रिड़मल को उनकी बहन हंसाबाई ने मेवाड़ बुुलवाया क्योंकि सांगा की मृत्यु के बाद मेवाड़ की राजनीति में चल रही उथल-पुथल से वह अपने पुत्र मोकल को बचाना चाहती थी। इस प्रकार रिड़मल मोकल तथा बाद में उसके पुत्र कुंभा का संरक्षक बना कुंभा ने रणमल की सहायता से अपने पिता के हत्यारों से प्रतिशोध लेकर अपनी सत्ता की धाक जमाई थी,इस वजह से रिड़मल का महत्व मेवाड़ में बढ़ गया था।रिड़मल के बढ़ते प्रभाव से आशंकित कुंभा ने लाखा के बड़े पुत्र चूंड़ा जो राजस्थान का भीष्म भी कहा जाता है तथा मेवाड़ के कुछ सरदारों के सहयोग तथा राजमाता सौभाग्यदेवी के साथ मिलकर रिड़मलजी के विरूद्ध षडयंत्र रचा तथा एक दासी भारमली की सहायता से रिड़मल को मरवा दिया। रिडमल के पुत्र राव जोधा भी उस समय मेवाड़ में थे लेकिन वे किसी प्रकार बचकर मारवाड़ की ओर आ गये तथा इस प्रकार मंड़ोर की सत्ता कुछ समय के लिये मेवाड़ के अधिकार क्षेत्र में आ गयी। इधर राव जोधा मरूप्रदेश में भटकते रहे तथा अपनी स्थिति मजबूत करते रहे। करीब 15 साल तक शक्ति एकत्र करने के बाद जोधा ने महाराणा कुम्भा के सेनापति अक्का सिसोदिया तथा अहाड़ा हिंगोला को मार कर मंड़ोर पर पुनः अधिकार कर लिया। इस प्रकार जोधा के नेतृत्व में मारवाड़ के राठौड़ वंश का सूर्य पुनः उदित हुआ। दूरदर्शी जोधा ने मंड़ोर को आक्रमणों की दृष्टि से असुरक्षित मानकर करीब 10 किलोमीटर दूर चिड़ियानाथजी टूँक नामक पहाड़ी पर 12 मई 1459ई.(ज्येष्ठ सुदी एकादशी, शनिवार) को नये सुरक्षित, मजबूत तथा विशाल दुर्ग की नींव रखी और नये नगर की स्थापना की जो जोधपुर के नाम से प्रसिद्ध हुआ। जोधा ने मंड़ोर के पास जोधेबाव नामक तालाब का निर्माण भी करवाया तथा मंड़ोर से माता चामुंडा की प्रतिमा नये दुर्ग के मंदिर में स्थापित की। जोधा की बड़ी रानी जसमादे ने राणीसर नामक तालाब तथा एक अन्य सोनगरा वंशी रानी चाँदकँवर ने चाँद बावड़ी का निर्माण करवाया। राव जोधा के साथ मेवाड़ से आये सेठ पदमजी ने किलानिर्माण में उनकी आर्थिक मदद की तथा पदमसागर नामक तालाब भी बनवाया। राव जोधा के विभिन्न रानियों से कुल 20 पुत्र थे जिनमें से तीसरे पुत्र राव सातलजी उत्तराधिकारी बने। इनके 5वें पुत्र राव बीका थे, जिन्होंने बीकानेर बसाया। राव दूदा भी जोधा के पुत्र थे, जिन्होंने मेड़ता में ऊपर सत्ता स्थापित की। महान कृष्ण भक्त तथा कवयित्री मीरा इन्हीं दूदा की पौत्री थी। मारवाड़ की सत्ता पुनः स्थापित करने वाले तथा जोधपुर के इस निर्माता जोधा का स्वर्गवास 16 अप्रेल 1488ई. को हुआ। इस प्रकार मारवाड़ में राठौड़ों की सत्ता की पुनस्र्थापना का श्रेय राव जोधा को दिया जा सकता है।

:- महेन्द्र कुमार जोशी 


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