बुधवार, 29 अगस्त 2018

JAB NARIYON KI LAAZ BACHAI RAO SATAL NE

जब नारियों की लाज बचाई राव सातल ने

    राजस्थान की बहुरूपा संस्कृति में गणगौर पर्व का बड़ा महत्व है। इस अवसर पर सुहागिन औरतें तथा कुंवारी कन्याएँ घुड़ला घुमाती है तथा अंतिम दिन ये घुड़ला पानी में डुबो दिया जाता है। तथ्य यह भी है कि यह घुड़ला छिद्रयुक्त होता है। यह परंपरा बरसों से हमारे राज्य में चली आ रही है जिसका आनंद स्त्री-पुरुष दोनों समान रूप से लेते हैं। जोधपुर में तो गत 40-50वर्षों से फगड़ा घुड़ला मनाया जाता है, जिसकी चर्चा अन्यत्र की जायेगी। घुड़ले के इस त्योंहार का सम्बन्ध जोधपुर के राव सातल के समय घटी एक ऐतिहासिक घटना से है, जिसकी जानकारी देना प्रासंगिक रहेगा।
    राव सातल का जन्म सन् 1435ई. में हुआ था। इनके पिता जोधपुर संस्थापक राव जोधा तथा माता हाड़ी रानी जसमादे थी। कहा जाता है कि राव जोधा के कुल 20 पुत्रों में से राव सातल तीसरे बड़े पुत्र थे। जोधा के ज्येष्ठ पुत्र नीम्बा का प्राणान्त उनके जीवनकाल में ही हो गया था तथा उनके दूसरे बड़े पूत्र जोगा को मंदबुद्धि मानने के कारण राव सातल को राजगद्दी प्राप्त हुई तथा 14मई1488ई. को राव सातल का राजतिलक हुआ। बीकानेर के संस्थापक राव बीकाख् मेड़ता के राव दूदा तथा बरसिंह, सूजा आदि भी राव सातल के सहोदर थे। राजतिलक के कुछ ही दिन बाद राव सातल ने मारवाड़ के पोकरण ठिकाने से दो कोस दूरी पर एक दुर्ग का निर्माण करवाकर उसे सातलमेर नाम दिया। इनकी कुल सात रानियां थी, जिसमें से एक रानी फूलकंवर कुंड़ल के भाटी देवीदास की पुत्री थी। यही भाटी देवीदास सन् 1457ई. के करीब जैसलमेर के रावल बने। रावल बनने पर उन्होंने कुंड़ल की जागीर अपने दामाद राव सातल को सुपुर्द कर दी। इसी रानी फूलकंवर ने फूलेराव नाम से प्रसिद्ध तालाब जोधपुर में बनवाया था।
    सातल जी का छोटा भाई बरसिंह मेड़ता में राजदरबार की ओर से शासन चलाता था। एक बार मेड़ता में अकाल पड़ने पर उसने हमलावर सांभर क्षेत्र को लूट लिया। उस समय सांभर अजमेर के अधीनस्थ था, अतः सांभर के चौहान शासक ने अजमेर के सूबेदार मल्लू खां, जो मांडू के सुल्तान नासिरशाह की ओर से अजमेर में नियुक्त किया गया था, को इस घटना की जानकारी देकर सुरक्षा की फरियाद की। तब सूबेदार मल्लू खां ने बरसिंह को अजमेर बुलाकर धाखे से कैद कर लिया। इस घटना की सूचना मिलते ही राव सातल तथा बीकानेर के राव बीका व राव दूदा ने अजमेर पर धावा बोल दिया। घबराये मल्लू खां ने उस समय तो बरसिंह को छोड़ दिया, पर अंदर ही अंदर प्रतिशोध की तैयारी करने लगा। शीघ्र ही उसने पूरी तैयारी के साथ मेड़ता पर हमला बोल दिया। इस लड़ाई में मांडू का सेनापति सिरिया खां तथा सिंध का मीर घुड़ला खां भी साध में थे। बरसिंह तथा दूदा दोनों जोधपुर भाग आये तथा मल्लू खां ने मेड़ता को बूरी तरह लूटा अब वह जोधपुर की ओर बढ़ने लगा। राव सातल अपने भाईयों बरसिंह, दूदा, सारंग खींची तथा बरजांग भीमोत आदि सरदारों के साथ मुस्लिम सेना की ओर बढ़े। इसी बीच मुस्लिम सेना ने पीपाड़ आकर पीपाड़ को भी लूटा। संयोगवश उस दिन गणगौर था तथा सुहागिन महिलाएँ व कुंवारी कन्याएँ गणगौर की पूजा करने आई हुई थीं। घुड़ले खां ने उनमें से करीब 140 औरतों तथा कन्याओं को कैद कर लिया। तथा वहां से कोषाणा (तह.भोपालगढ़ जिला जोधपुर) आकर अपना डेरा जमा लिया। उस समय रात तो हो चुकी थी। जब सातलजी को यह सूचना मिली कि पीपाड़ की स्त्रियों व कन्याओं को मुसलमानों ने बंदी बना लिया है तथा रात को उनकी इज्जत पर हाथ ड़ाला जा सकता है, तो वह क्रोध से भर उठे तथा नारियों की रक्षार्थ रात्रिकाल में ही मल्लू खां के शिविर पर हमला कर दिया। घबराये मुसलमान भाग छूटे। मल्लू खां अजमेर की तरफ भाग गया तथा सिरिया खां को दूदा ने मार गिराया। मीर घुड़ले खां तथा सातल जी में भयंकर लड़ाई हुई, आखिरकार सातलजी ने घुड़ले खां को मार गिराया तथा स्वयं भी बहुत घायल हो गये। उनके निर्देश पर औरतों को आजाद कर दिया गया। सांरग खींची ने घुड़ले खां का सिर काटकर उसमें तीरों से छेद कर दिये तथा उसका छिद्रित सिर को उन औरतों को सौंप दिया जिनका उसने अपमान किया था। औरतें राव सातल की यशोगाथा गातीं हुईं घुड़ले खां का सिर लेकर पूरे पीपाड़ में में घर-घर घूमीं। इस घटना के प्रतीक के रूप में न केवल मारवाड़ वरन् पूरे राजस्थान में आज भी घर-घर घुड़ला घुमाया जाता है तथा अंतिम दिन उसे जल में डूबो दिया जाता है। कोसाना की लड़ाई में घायल राव जीवित नहीं रह सके लेकिन स्त्रियों की मान रक्षा कर वे आज भी अमर है। 1 मार्च 1492 को राव सातलजी का स्वर्गवास हो गया तथा कोसाना के तालाब के किनारे ही उनका अंतिम संस्कार किया गया, जहां उनकी छतरी आज भी मौजूद है। उनकी सातों रानियां भी उनके साथ सती हुईं। उनकी एक रानी हरखाबाई की पूजा तो नागणेची माता के साथ की जाती है। जोधपुर राजघराने की ओर से चैत्र सुदी तीज को पहले ईसर तथा गवर दोनों की पूजा की जाती थी, लेकिन राव सातल की मृत्यु के बाद इस दिन केवल गवर की ही पूजा की जाती है। 
    उल्लेखनीय तथ्य यह है कि विभिन्न ऐतिहासिक ग्रंथों में कोसाना की लड़ाई का नायक राव सातल को बताया गया है, लेकिन चैलदान खिड़िया कृत ग्रंथ खींची वंश प्रकाश में इस लड़ाई का नायक सारंग खींची को बताया गया है। अधिकांश इतिहासकार इस तथ्य से सहमत नहीं है। 
    इस प्रकार घुड़ला जब तक स्त्रियों के द्वारा घुमाया जाता रहेगा, वीर सातल की यशोगाथाएं यूं ही अमर रहेगी।
- महेन्द्र कुमार जोशी
संदर्भः-श्री जुगल परिहार द्वारा लिखित लेख।    


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