शुक्रवार, 26 अक्टूबर 2018

लाल लाजपत राय की मौत का बदला

जब भगत सिंह ने पूरा किया प्रतिशोध  


    वर्ष 1928 दिन 30 अक्टूबर वार मंगलवार को लाहौर सहित पूरे देश में जगह-जगह साइमन कमीशन वापस जाओ के नारे लगाए जा रहे थे। लाहौर में इस विरोध का नेतृत्व कर रहे थे देश की ख्यात प्राप्त त्रिमूर्ति के एक सदस्य नाम-लाला लाजपत राय। साइमन कमीशन का पूरे भारतवर्ष में जबरदस्त विरोध किया जा रहा था। 
    लाहौर में जगह जगह लाला जी के नेतृत्व में साइमन कमीशन का विरोध किया जा रहा था। जब लाला जी अन्य देशभक्तों के साथ नारे लगाते हुए साइमन कमीशन का पुरजोर विरोध कर रहे थे तो एक अंग्रेज पुलिस सुपरिटेंडेंट जेम्स ए स्काॅट ने बेकाबू होती और विद्रोही भीड़ पर लाठी चार्ज का आदेश दे दिया। उसका आदेश पाते ही ए एस पी जाॅन पी साॅन्डर्स विरोध कर रहे लोगों पर सिपाहियों के साथ टूट पड़ा। इसमें अंग्रेजी नुमाइंदों ने निर्दोष और लाचार लोगों पर बड़ी बेरहमी से लाठियां बरसायी। कईं लोग मारे गए और कईं घायल हो गये। इस दौरान लाला जी पर भी लाठियां चली तो वे गंभीर रूप से घायल हो गये। और उन्होंने कहा कि ''मुझ पर पड़ी हर एक लाठी अंग्रेजी हुकुमत के ताबूत की कील बनेगी''। इस घटना में वीर शिरोमणि शहीद-ए-आज़म भगत सिंह भी शामिल थे। 
    भगत सिंह बचपन से लाला के साथ जुड़े हुए थे और उन्हें अपने पिता तुल्य समझते थे। अंग्रेजों की इस करतूत का बदला लेने की बात उनके दिमाग में घर तो कर ही चुकी थी लेकिन 17 नवम्बर 1928 को जब लाला जी मौत हुई तो बदले की यह आग परवान चढ़ चुकी थी। 
    भगत सिंह और उनके हिन्दुस्तान सोशिएलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन के अन्य साथियों ने इसके लिए एक योजना बनाई। जिसमें उनका निशाना था पुलिस सुपरिटेंडेंट जेम्स ए स्काॅट। वे उसकी हत्या करके लाला जी की मौत का प्रतिशोध पूरा करना चाहते थे। 
    दिन 17 दिसंबर वर्ष 1928 वार सोमवार समय 4ः15 लाला जी के मृत्यु के ठीक एक महीने बाद जगह लाहौर पुलिस थाने के सामने। 
    सब कुछ बिना प्लान बी के तय कर लिया गया था। इस प्रतिशोध के इश्तेहार भी पहले ही तैयार कर दिए गए थे जिसमें लिखा था ''लाला जी की मौत का बदला ले लिया गया पुलिस अधिकारी साॅन्डर्स मारा गया''। सबने अपनी अपनी जगह ले ली थी। 
    प्लान के मुताबिक जयगोपाल साईकिल लेकर पुलिस थाने के आगे से निकल रहे थे और फिर अचानक साईकिल की चेन सही करने का नाटक करने लगे। भगत सिंह और राजगुरु पेड़ के पीछे छिपकर जयगोपाल के इशारे का इंतजार करने लगे। ऊधर चन्द्रशेखर आजाद (पंड़ित जी) पास ही डी ए वी स्कूल की चारदीवारी की ओट में छिपकर संरक्षक का काम कर रहे थे। 
    वैसे तो स्काॅट का काम तमाम करना था लेकिन साॅन्डर्स जब बाहर आया तो जयगोपाल ने घात लगाकर बैठे भगतसिंह और राजगुरु को इशारा कर दिया। 
    इशारा पाते ही राजगुरु ने अपनी .32mm की सेमी आॅटोमैटिक पिस्टल काॅल्ट से एक गोली बिना चूके सीधे साॅन्डर्स के शरीर में उतार दी। फिर भगत सिंह ने भी उसी प्रकार की पिस्टल से और दो-तीन गोलियां उसके शरीर के में भेज कर उसके मरने का पूरा इंतजाम कर दिया। फिर तीनों वहां से भाग छूटे और पंड़ित जी उनके अंगरक्षक बनकर उनका पीछा कर रहे सैनिकों से पार पा रहे थे। एक सिपाही चनन सिंह जब उनका पीछा कर रहा था तो उन्होंने उसे चेताया कि ''अगर वो पीछा करेगा तो उसे जान से हाथ धोना पड़ेगा'' लेकिन आज़ाद जी की चेतावनी को न मानकर वो खुद ही अपनी मौत का बंदोबस्त कर चुका था। फिर क्या था उसे जान से हाथ धोना पड़ा। सभी लोग बिना घायल हुए वापस आ चुके थे जैसे ठीक सर्जिकल स्ट्राइक की तरह। 
    वापस आकर उन्होंने पूरे शहर में जगह जगह इश्तेहार लगवा दिए और पर्चे भी बांटे जिसमें लिखा था ''लाला जी की मौत का बदला ले लिया गया, साॅन्डर्स (स्काॅट को काटकर) मारा गया''। समूचा देश अब इन देशभक्तों का मुरीद हो गया और इन देशभक्तों का कद और ऊँचा हो गया। नमन हैं इन वीर सपूतों को और दण्डवत हैं इन वीरों के अदम्य साहस को।
    जिस पिस्तौल से भगत सिंह ने साॅन्डर्स की हत्या की थी उस पिस्तौल को इंदौर के  सेंट्रल स्कूल ऑफ वेपंस एंड टेक्टिक्स(CSWT) में प्रदर्शित किया गया है।
इंकलाब जिन्दाबाद 
-दिनेश कुमार जोशी 

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