सोमवार, 24 सितंबर 2018

GIRI-SUMEL KA YUDHH

गिरी-सुमेल का युद्ध 

    यह प्रसिद्ध घटना उन दिनों की है जब मारवाड़ पर राव मालदेव का शासन था। महान योद्धा राव मालदेव ने अपने श्रेष्ठ रण कौशल से  मारवाड़ का राज्य दिल्ली और आगरा की सीमा तक पहुंचा दिया था। उन्होंने मेड़ता को भी अपने अधिकार में ले रखा था ।इसी वजह से मेड़ता नरेश वीरमदेव जी इन से नाराज़ थे । वीरमदेव जी की नाराजगी मालदेव के लिए बहुत भारी पड़ी। बीकानेर के राव कल्याणमल के छोटे भाई भीमराज दिल्ली के बादशाह शेरशाह सूरी की सेवा में थे ।बदले की भावना से वीरम जी  भीमराज के पास पहुंचे और भीमराज की सहायता से शेरशाह सुरी को मालदेव पर आक्रमण के लिए उकसाया। शेर शाह सुरी अपनी पूरी तैयारी के साथ 20000 सैनिकों सहित आगरा से चल पड़ा और सुमेल के मैदान में अपना डेरा स्थापित किया। सूचना मिलने पर राव मालदेव भी अपने 50000 सैनिकों सहित गिरी के मैदान में आ डटे। माल देव उस समय भारत के सर्वश्रेष्ठ योद्धा थे और उनकी इस विशाल सेना को देखकर शेरशाह भयभीत  हो गया और घबराकर वापस लौटने का निश्चय किया। वीरमदेव जी ने शेरशाह सूरी को आश्वासन दिया और एक चालाकी भरी चाल चली ।उन्होंने बादशाह से 100000 फिरोजशाही स्वर्ण मुद्राएं  लेकर राव मालदेव की सेना में बेचने को भेजी जो वहां से 8 मील की दूरी पर थी। इन मोहरों का मूल्य उन दिनों 19 था जो वीरम जी ने 17 में बिकवा दी। इसके पश्चात वीरम जी ने 100 ढालें मंगवाई और बादशाह के सेवकों के हाथों चालाकी भरे फरमान लिखवा कर ढालों की गात्तियों में सिलवा दिये। अब इन ढालों को भी व्यापारी के माध्यम से राव मालदेव के सरदारों में सस्ती बिकवा दी। वीरमदेव जी की चाल सफल रही। अब वीरम जी ने मालदेव को एक पत्र लिखाए जिसमें उन्होंने संदेश भेजा कि आपने मेरा मेड़ता राज्य छीन लिया है और उसको वापस लेने के लिए मुझे शेरशाह का आश्रय लेना पड़ा पर आपके सभी सरदार न जाने क्यों बादशाह के सेवक बने हैं। हजारों सोने की मुद्राएं उनकी भेजी हुई ली है। यदि आप ही ढालें मंगवा कर  गट्टियों को चीरें तो आपको सब मालूम पड़ जाएगा। पत्र पढ़ते ही मालदेव एकदम चौंक गया। पत्र की पुष्टि के लिए मालदेव ने अपने जासूसों को भिजवाया और शीघ्र ही जासूसों ने मालदेव को संदेश दिया कि सेना में बहुत सारी फर्रुख शाही मोहरे आई है। अब मालदेव का सरदारो के प्रति संदेह बढ़ गया था। अतः उन्होंने सरदारो से ढाले मंगवाई और जब ढालो की गिट्टियों को फड़वाया गया तो वास्तव में प्रत्येक ढाल में से शाही फरमान निकला जिसका अर्थ यह था कि जो वादा तुमने मालदेव को पकड़ा देने का किया है उसको जल्दी पूरा करो। इन सब संदेशों को पढ़कर मालदेव अवाक रह गए। जब सरदारों को इस बात की भनक पडी  तो उन्होंने मालदेव को बहुत समझाया लेकिन मालदेव का संदेह नहीं मिटा । इस प्रकार मालदेव उसी रात्रि को सिवाना के पहाड़ों की तरफ चल दिए ।वीरमदेव और शेर शाह का षड्यंत्र सफल रहा। मालदेव के चले जाने पर भी स्वामीभक्त सरदार जेता और कुंपा आदि ने 5 जनवरी 1544 ईस्वी को शाही फौज पर जबर्दस्त धावा बोल दिया। शाही फौज के छक्के छूट गए उनके पांव उखड़ गए और वे बेतहाशा भागने लगे पर एकाएक शेर शाह  की एक अन्य टुकड़ी और अा मिली। विकट परिस्थितियों में राठौडों को क्षेत्र से हटना पड़ा। कहने को राठौड़ पराजित हुए परंतु शेर शाह राठौडों की वीरता और कुशलता पर आश्चर्यचकित होकर बोला- 
मैं तो मुट्ठी भर बाजरे के लिए हिंदुस्तान की बादशाहत को ही खो देता ।
    इस प्रकार एक बार फिर आपसी फूट ही हिंदुस्तान के लिए नुकसान जनक साबित हुई।
प्रस्तुति:-महेंद्र कुमार जोशी  

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